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लेखनी कहानी -11-Sep-2022 सौतेला

भाग 25 सन 1959 में एक मूवी आई थी "कागज के फूल" जिसका यह गाना बहुत प्रसिद्ध हुआ था 

देखी जमाने की यारी 
बिछुड़े सभी बारी बारी 

शिवम सोच रहा था कि कहीं यह गाना उसी के लिए तो नहीं बना था ? उसने इन 20 वर्षों में कितना कुछ खोया है । जो उसके अपने थे वे एक एक कर उसे छोड़कर चले गए । जब वह डेढ़ साल का था तो उसकी मां गायत्री उसे छोड़कर चली गई । डाकू मोहर सिंह उसके लिए यमदूत सिद्ध हुआ था । वह कुछ बड़ा होता, समझता इससे पहले ही उसकी सौतेली मां आ गई जिसने उसके बाप को भी एक तरह से उससे छीन ही लिया था । बाप के होते हुए भी वह अनाथ जैसा हो गया था । वो तो नई मां ने उसे "मां" का वात्सल्य दे दिया था वरना वह तो मां की ममता को तरसता ही रहता । बाद में सुमन बुआ और दिव्या चाची ने उसके बचपन को संवारा । उसका जीवन परिपूर्ण बनाया मगर ईश्वर को उसकी खुशियां अच्छी नहीं लगीं और उसने उसके फूफाजी राजेश को छीन लिया । राजेश के जाने से सुमन भी एक चौथाई रह गई थी । वह तो एक जिन्दा लाश बनकर रह गई थी । एक खिलता हुआ गुलाब सूखे फूल में बदल गया था । एक खिलखिलाहट किसी चीत्कार में तब्दील हो गई थी । पूरा घर एक गुलशन से मरघट में परिवर्तित हो गया था । 

वह इस सदमे से उबरता कि उसके दादाजी काल के गाल में समा गये । घर में एक बार फिर से मातम पसर गया । न जाने किसकी नजर लग गई थी उसके परिवार को । आए दिन विपत्तियों का पहाड़ टूटता ही रहता है उस पर । दादाजी के सदमे से अभी उबरे ही थे कि दिव्या चाची चल बसीं । चाची के जाने से शिवम के जीवन में अंधेरा छा गया था । नई मां अब बूढी हो चुकी थी । सुमन बुआ चिड़चिड़ी सी, खब्ती सी हो गई थी । वह बात बात पर खाने को दौड़ती थी । विक्षिप्त की तरह व्यवहार करने लगी थी सुमन बुआ । जिद्दी इतनी कि शादी का नाम सुनते ही बर्तन फेंकना शुरू कर देती थी । दिव्या चाची के जाने से पूरा परिवार बिखर गया था । छुट्टियों में घर आने का मन नहीं करता था उसका । हंसी तो जैसे उस घर से बिल्कुल ही रूठ गई थी । 

दौलत का भी प्रमोशन हो गया था और अब वह सहायक उप निरीक्षक यानि ए एस आई बन गया था । उस पर अब अधिक जिम्मेदारियां आ गई थी । वह घर पर कम ध्यान देने लगा था । नेहा अब बड़ी हो गई थी । कॉलेज में आ गई थी । उसका वहीं पर एक कॉलेज में एडमिशन करवा दिया था । आर्यन सीनीयर क्लास में आ गया था । घर में एक ऐसी औरत की आवश्यकता थी जो इस बिखरे घर को बांध सके । नई मां ने दौलत से कहा कि वह फिर से शादी कर ले लेकिन दौलत शिवम का सौतेला होने का हाल देखकर दूसरी शादी करने की हिम्मत नहीं कर सका । वह आर्यन को शिवम नहीं बनाना चाहता था । 

शिवम की नौकरी लग गई थी । उसकी पहली पोस्टिंग जोधपुर शहर में हुई थी । वह कलेक्ट्रेट में बाबू बन गया था । शिवम इस नौकरी से खुश हो गया । वह अब अपने पैरों पर खड़ा हो गया था । शिवम की नौकरी लगने से नई मां, सुमन और दौलत बहुत खुश हुए । आखिर उन सबकी तपस्या रंग लाई थी । वैसे हर तपस्या रंग लाती है । जिसने भी तपस्या की है फल उसे जरूर मिला है । शिवम कोई पृथक तो नहीं था । 

संपत की कभी कभार शिवम से फोन पर बात हो जाया करती थी । शिवम एक बहुत कुलीन , सौम्य और शांत युवक था । वह एक सजीला नौजवान था । कॉलेज में लड़कियां उसे लाइन मारती थीं लेकिन वह अपने में मस्त रहने वाला बंदा था । वह लड़कियों के चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहता था । उसका एकमात्र उद्देश्य था सरकारी नौकरी करना । वह उसी में लगा रहा और आखिर में उसने अपना मुकाम पा ही लिया था । 

शिवम को जोधपुर में मकान तलाश करना था । लोग उसे पढने वाला स्टुडेंट समझ कर मकान देने के लिए तैयार ही नहीं होते थे । वह था भी 22 साल का और था भी स्मार्ट । उसे देखकर कोई लड़की वाला मकान मालिक उसे अपना मकान कैसे देता ? उसकी बेटी का मन डोलने के चांस पूरे पूरे जो थे । शायद एक कारण यह रहा होगा । 

ऑफिस में एक बड़े बाबू ने उसे अपने घर में जगह दे दी । उसकी दो लड़कियां थीं । दोनों ही कॉलेज में पढती थीं । उसने सोचा कि दोनों में से कोई एक शिवम को पसंद आ जाएगी तो उसकी शादी शिवम से कर देंगे । इसी उद्देश्य से उसने शिवम को कहा "आप खाना हमारे यहां ही खा लिया करो । होटल का खाना अच्छा नहीं होता है । उससे पेट खराब हो जाता है" । 
"अंकल मेरी फिक्र ना करें । मैं कोई टिफिन लगा लूंगा" 
"ऐसे कैसे ना करें आपकी फिक्र ? आप मेरे घर में रह रहे हैं तो आपकी सारी जिम्मेदारी भी मेरी ही है । यदि आपको हमारे घर में खाना खाने में हिचकिचाहट हो तो मेरी बड़ी बेटी लवीना या छोटी बेटी शीना खाना बना देगी आपका" । बड़े बाबूजी ने प्रेम से पगे हुए वचन सुनाए । 

बड़े बाबू के इरादे ठीक नहीं लग रहे थे शिवम को । उनकी बड़ी बेटी लवीना सामने ही खड़ी थी । शिवम ने लवीना की ओर देखा तो वह एकटक उसे ही देखे जा रही थी । लवीना की भंगिमा बता रही थी कि वह उसका खाना बनाने को तैयार है । वह कुछ कहता इससे पहले ही बड़े बाबू बोल उठे "आप तो कुछ भी कष्ट मत उठाना । किसी बाई को भी मत लगाना । ये बाइयां बड़ी उठाईगिरी होती हैं । सामान उठाकर ले जाती हैं । लवीना सारा काम कर देगी आपका । झाड़ू पोंछा, बरतन वगैरह सब कर देगी । क्यों लवीना" ? बड़े बाबू ने उसके सामने ही लवीना से पूछ लिया 
"जी पापा" लवीना ने स्वीकृति दे दी । 

शिवम फंस गया था । अब क्या करें ? लवीना शक्ल सूरत की बुरी नहीं थी मगर शिवम अभी शादी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता था । उसने इतना ही कहा "अंकल , मैं अपना काम खुद ही कर लेता हूं । आपको कष्ट उठाने की आवश्यकता नहीं है" । और वह अपने कमरे में आ गया । 

क्रमश: 

श्री हरि 
25.5.23 

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4 Comments

Harsh jain

04-Jun-2023 02:02 PM

Nice 👍🏼

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Alka jain

04-Jun-2023 12:50 PM

V nice 👍🏼

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वानी

01-Jun-2023 07:00 AM

Nice

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